शनिवार, 6 सितंबर 2025

शकुनी श्वान शकुन बतलाते [ नवगीत ]

 522/2025


 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


शकुनी श्वान

शकुन बतलाते।


पैरों पर लोटे तो देता

शुभ समाचार संदेश

सूँघे श्वान वाम घुटनों को

धनदायक   परिवेश 

यदि अज्ञात श्वान घर आए

धन का लाभ जताते।


यात्रा में यदि वाम ओर हो

धन का लाभ कराए

रगड़े नाक धरा पर कुत्ता

गड़ा हुआ मिल जाए

गर्दन ऊँची करे श्वान तो

कार्य सफलता लाते।


श्वानों के संकेत समझना

सरल नहीं ये तथ्य

कान फड़फड़ा उठे श्वान यदि

नहीं गमन औचित्य

शुभद और अशुभद श्वानों के

जन को लाभ हानि दे जाते।


शुभमस्तु !


06.09.2025 ●2.00प०मा०

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प्रबल नासिका-शक्ति हमारी [ नवगीत ]

 521/2025



   


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


प्रबल नासिका-शक्ति हमारी

जासूसी के दावेदार।


मानव ने 

पहचान लिया है

शक्ति हमारी का उपयोग

लगा दिया तब

गुप्तचरी में

किया श्वान का ही उपभोग

वैसे क्या हम लगते उसके

कोई पिछले नातेदार?


बारह - बारह मील 

दूर से 

पहचानें हम गंध -सुगंध

गलत नहीं हो

जाँच हमारी

उड़े  तेज   कोई   दुर्गंध

भुना रहा है

जासूसी दल

हमसे ही करता इकरार।


कमजोरी या

शक्ति हमारी

घ्राण शक्ति में रहती है

सत्य मानता

बात हमारी

जो कुछ जन से कहती है

शोध किया 

मानव ने हम पर

हम कुत्ते ही तेज तरार।


शुभमस्तु !


06.09.2025●11.15आ०मा०

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केवल कुत्ता गाली क्यों? [ नवगीत ]

 520/2025


     


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


गाय न गाली भैंस न गाली

केवल कुत्ता गाली क्यों?


दूध पिलाते

यदि मानव को

देता नहीं कभी गाली

अपना जो

सीधा कर पाता

उल्लू ,मिले भरी थाली

करता है

 वह अश्व सवारी

कुत्ते की  है  गाली यों।


एक मिला गुण

मात्र वफ़ा का

जो आदम के पास नहीं

अगर वफ़ा मिलती

मानव में

न हो श्वान की पूँछ कहीं

सधे काम जब

अपने सारे

मिले श्वान को नाली क्यों?


बनीं कहावत

मुहावरे भी

सब में एक यही कुत्ता

भाव नहीं है

उत्तम कोई

उसमें भी कुत्ता सुत्ता

बेचारी है 

कुतिया अपनी

कुत्ते की घरवाली यों।


शुभमस्तु !


06.09.2025●10.30 आ०मा०

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चलो चलें पहचान बनाएँ [ नवगीत ]

 519 / 2025


       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चलो चलें 

पहचान बनाएँ।


वफ़ादार हम 

कुत्ते होते

मानव से उम्मीद नहीं है

नींद श्वान की

हम हैं सोते 

हम जो करते सभी सही है

मजबूरी इतनी है अपनी

रोटी भी उसकी ही खाएँ।


पड़े जरूरत

तब ही भौंकें

यों ही नहीं भौंकना अच्छा

होती है

बदनाम भौंक ये

बनना होगा हमको सच्चा

करें न ऐसा काम एक भी

बार - बार कूकुर पछताएं।


दुर्दिन ऐसे 

कभी न देखे

कुत्ता कहकर लतियाते हैं

उनकी घरनी

लाड़ लड़ाती

हम पर इतना पतियाते हैं

लादा वादा

अदालत में क्यों

अपनी करनी पर उकताएँ।


शुभमस्तु !


06.09.2025●9.15 आ०मा०

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कुत्तों का मंत्रालय होगा [ नवगीत ]

 518/2025


       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कुत्तों का मंत्रालय होगा

कुत्ते ही सब मंत्री होंगे।


एक आदमी 

नहीं घुसेगा मंत्रालय में

कुत्तों का

कानून बनेगा तंत्रालय में

होंगे जो  तैनात 

श्वान   ही संत्री  होंगे।


तंत्र हमारा भी

अपना  क्या  कम है कोई

नहीं सुनेंगे

किसी श्वान ने आँख भिगोई

श्वान - तंत्र में 

ख़ालिस कुत्ते तंत्री होंगे।


गली-गली में

आए दिन कुछ झगड़े होते

पूँछ दबाकर

भागें जो कुछ पिछड़े रोते

पुलिस हमारी

खुफिया भी कुछ क्षत्री होंगे।


शुभमस्तु !


06.09.2025 ●8.30 आ०मा०

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क्यों कुत्तों की तरह लड़ो तुम? [ नवगीत ]

 517/2025


 


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


क्यों कुत्तों की तरह

लड़ो तुम?


मानव हो तो

मानव ही रह

मानवता का पाठ पढ़ाओ

भौंक -भौंक कर

क्या जतलाओ

अपना ही क्यों खून सुखाओ

थोड़ी-सी विनम्रता लाओ

मुँहजोरी कर नहीं

भिड़ो तुम।


बातचीत से

हल कर मसले

कुत्तावाद नहीं फैलाओ

अपनी भी

ग्रीवा में झाँको

अपनी कीमत नहीं गिराओ

पैर फिसलकर गिर जाओगे

इतने ऊपर नहीं

चढ़ो तुम।


कुत्तों की 

संगत में रहकर

कुत्तागीरी तुमको आई

नहीं नियम 

कानून जानते

लड़ते सारे लोग -लुगाई

संस्कार भूले मानव के

जिद मत ठानो नहीं

अड़ो तुम।


शुभमस्तु !


06.09.2025●7.15 आ०मा०

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आदमी फिर भी पाले! [ नवगीत ]

 516/2025


       


 © शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


है विपरीत स्वभाव

आदमी फिर भी पाले!


इधर गली का

उधर गृही का

मेल न कोई

स्वार्थ साधने की

सारी यह

जुर्रत बोई

अपनी ही सीमा में

रह खुद को समझा ले।


देख उधर

सड़कों पर

कोई बेबस निर्बल

उसे पाल ले

देगा ही कुछ

तुझको संबल

मानव है मानवता के

कुछ गीत सुना ले।


प्रकृति भिन्नता

कब तक

तेरे साथ चलेगी

दुर्दिन में

तेरी क्या होगी

तुझे छलेगी

कर मानव से प्रेम

प्रेम के गाने गा ले।


शुभमस्तु !


06.09.2025●5.45 आ०मा०

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किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...